Thursday, July 14, 2011

हर किसी को नहीं मिलता...

मैं तब सातवीं में पढ़ता था . एक दिन अंग्रेज़ी के टीचर को मुझ पर इतना गुस्सा आया की उन्होंने आव देखा न ताव लगे अपने प्रिय हथियार से मेरी धुनाई करने . उनका प्रिय हथियार न तो छड़ी थी ना लात घूँसा . जानते हैं उनका हथियार क्या था? उनका हथियार था- बेल्ट . पीठ से पैर तक लगभग सौ निशान . लंच में अपने भैया को दिखाया और घर पर मम्मी को बताया . मम्मी ने सबसे पहले कारण पूछा . कारण कुछ होता तो बताता . उसके बाद मम्मी ने उनकी क्लास ली . आज का समय होता तो हफ़्तों न्यूज में छाया रहता . गुरुदेव का क्या होता वह तो राम जाने . मैं पढने में कमजोर था मगर अनुशासित बच्चा था . अनमने ढंग से पढ़नेवाला बच्चा बिलकुल ही अनमना हो गया पढाई के प्रति . मगर गणित में क्रॉस के साथ हर बार पास होता गया . लेकिन इस तरह मैट्रिक पास होना असंभव था .


पापाजी ने मुझे गणित में पास होने लायक बनाने की जिम्मेवारी भैया को सौंपी . सिर्फ गणित में इसलिए की बाकी विषयों में मैं खुद पास हो जाता था और नम्बर भी अच्छे आते थे . भैया पढाई में स्कूल के बेहतरीन छात्रों में से एक थे . वे समझ गए की ज्योमेट्री और ट्रीग्नोमेट्री मेरे बस की बात नहीं . अलजेब्रा और अंकगणित के पचास नम्बर के सवाल पर कमान्ड करवा कर उन्होंने मुझे इम्तिहान देने भेजा और मैं पैतालीस नंबर लेकर सेकंड डिवीजन में मैट्रिक पास कर गया . सबके चेहरे पर खुशी की लहर तब दूनी हो गयी जब ड्रीम यूनिवर्सिटी पटना विश्वविद्यालय के कालेज में मेरा दाखिला हो गया . लेकिन गुरु और गोविन्द को सामने पाकर असमंजस वाली स्थिति अब तक मेरे लिए नहीं होने पायी थी .

परिवार में मैं भैया के ‘साया’ के तौर पर जाना जाता था. मैं उसका सारथी भी था, श्रोता भी था और पाठक भी था. हम प्रायः साथ देखे जाते थे. भैया को कालेज छोड़ना और लाना. नौकरी लगी तो ऑफिस पहुंचाना-लाना मेरा ही काम था . भैया के दोस्त मुझसे भी मिलने आया करते थे जब भैया की पोस्टिंग बाहर हो गयी थी. रिश्तेदार कहते अपने भाई का चपरासी बनेगाकोई कहता कभी घने बरगद के पेड़ के नीचे कोई छोटा पेड़ नहीं पनप सकता. लेकिन भैया ने कभी मुझे खुद से अलग नहीं कियाउसके साथ ने मुझे सिनेमा, साहित्य, संगीत और साइंस के विषय में बहुत कुछ सीखने का मौक़ा दिया. एक दिन जब मेरी लिखी कविता अखबार में छपी तो सभी चकित रह गये. मैं भी और भैया भी. भैया ने कहा जो मैं ना कर सका तुमने कर दिया. जबकि भैया ने खुद रेडियो के लिए अनगिनत नाटक लिखे और उनमें अभिनय कर चुके थे. अब मैं लिखता और भैया करेक्शन करते और मैं छप भी जाता. मैंने कब सीखा ये सब मुझे नहीं पता. भैया ने कब सिखाया उसे नहीं पता. बिलकुल एकलव्य और गुरु द्रोण की कहानी रिपीट हो रही थी.

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर पोस्ट डालने की सोच रहा था परन्तु किसी को गुरु माना हो तो उनकी वन्दना करता . दरसल एम . . तक पढ़ने के बावजूद मन किसी शिक्षक को उस श्रद्धा भाव से देखने को तैयार नहीं था . मगर अब इसमें संशोधन की आवश्यकता थी . गुरु सिर्फ वही नहीं जो स्कूल में शिक्षा देते हैं बल्कि गुरु कोई भी हो सकता है. भैया मेरे गुरु नहीं हैं क्योंकि द्रोणाचार्य ने अपने पुत्र अश्वत्थामा को पांडवों के सामान शिक्षा दी पर वे अपने पुत्र के गुरु के रूप में नहीं जाने जाते हैं . एकलव्य को शिक्षा नहीं दी पर उसके वे गुरु हैं . भैया बरगद का पेड़ हैं और उसके नीचे कोई और पेड़ नहीं पनप सकता ऐसा मानने वालों के आशीर्वाद की अपेक्षा के साथ बताना चाहता हूँ की बरगद के नीचे से भले कोई पौधा न पनपे मगर पनपेगा तो सिर्फ बरगद ही पनपेगा. हाँ, आप सिर्फ इतना करें की उसे न तो फटकारें, न कोसें और न ही हतोत्साहित करें क्योंकि हर किसी को ऐसे भाई कहाँ मिलते हैं?   

13 comments:

  1. वो दिन, तुम्हारे बदन पर पड़े लाल निशान और मम्मी का वो चंडिका का रूप और स्कूल के सबसे दुर्दांत मास्टर (शिक्षक नहीं और गुरू तो कदापि नहीं)को मम्मी के सामने कांपते देखना..सब गुजर गया नज़रों से...
    मैं तो कभी बरगद नहीं बना..पीपल के पेड़ के साये में बड़े हुए और देखा है न, देवी स्थान के पीपल में पनपता हुआ नीम का पेड़. दोनों का अलग वजूद, मगर एक साथ.. जैसे मिलकर आम से मीठी हो गयी धूप!!

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  2. अहा!
    अद्भुत श्रद्धा और भक्ति।
    गुरु पूर्णिमा को इससे बढ़िया गुरु दक्षिणा और कुछ नहीं हो सकती मेरे भाई।
    जीवन में आगे बढो, खूब आगे बढ़ो! आशीष है।

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  3. सलिल सर से परिचय तो है आपसे भी परिचय हुआ तो कुछ नया सा नहीं लगा... लगा कि ये तो मैं खुद हूँ...सलिल जी से संक्षिप्त परिचय में काफी कुछ सिखने को मिला है... प्यार मिला है... स्नेह मिला है.... इमोशनल कर दिया आपने...बड़ा भाई बरगद नहीं हो सकता....

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  4. बहुत अच्छा लिखा है ..जीवन कि ऐसी घटनाएँ कभी नहीं भूलतीं ... जिससे शिक्षा मिले वही गुरु ... शुभकामनायें

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  5. ये बरगद का प्रतीक बहुत खूबसूरत है..सलिल भाई कैसे गुरु और भाई के लिये....
    हवा मे लटकी अतिरिक्त जड़ें....
    जैसा अन्दर.....वैसा बाहर....
    आमन्त्रण में खुली बाहें.....

    गुरु पूर्णिमा की शुभकामनायें!

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  6. "कैसे" को "जैसे" पढ़ें

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  7. बलिहारी गुरु आपनो...

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  8. ह्म्म्म... सच मे हर किसी को ऐसे भाई कहाँ मिलते हैं?..पर ये बता दूँ कि ये तो मेरे भैया है...

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  9. उपयोगी सलाह, सुन्दर शब्द! उन रिश्तेदारों की दृष्टि तो कब की बदल ही चुकी होगी इसमें मुझे कोई शुबहा नहीं है।

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  10. सलिल जी जैसा प्यारा भाई सबको मिले...जो गुरु भी हो सके और सखा भी ...बहुत कुछ सीखा है हमने सलिल भाई जी से...

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  11. आपका यह पोस्ट ज्ञानवर्धक है । इससे बहुत कुछ सीखने को मिलता है । मेरे नए पोस्ट "हो जाते हैं क्यूं आद्र नयन" पर ाके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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  12. अभी का घटनाक्रम होता तो मास्टर की तो छुट्टी पक्की थी।

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